अनुवांनशिक रोगों की सूची (Short Notes In Hindi)
अनुवांनशिक रोगों की सूची (Short Notes In Hindi)
जब माता का अंडा और पिता का शुक्राणु मिलकर एक भ्रूण बनाते है, तो उनके गुणसूत्र दो भागों में बटकर आपस में संयुक्त हो जाते हैं। शिशु में कुल 46 गुणसूत्र होते हैं, 23 माता के अंडे से और 23 पिता के शुक्राणु से प्राप्त होते है। जो अनुवांशिकता का निर्धारण करती है । जब इन गुणसूत्रों में किसी प्रकार की आसमान्यता होती है। तो अनुवांशिक विकार उत्पन्न हो जाते है।
हमें अपने माता-पिता से बहुत सी चीजें विरासत में मिलती हैं ।जैसे -शक्ल-सूरत, हाव-भाव, लंबाई-चौड़ाई इसके साथ साथ उनके गुण पर क्या आप जानते हैं कि हमें अपने माता-पिता,पूर्वजों से बहुत सी बीमारियां भी मिल जाती हैं|जब कोई बीमारी माता पिता से उनकी आने वाली पीढ़ी में स्थानांतरित होती है|उसेअनुवांशिक रोग कहते है।
अनुवांशिक रोग क्या है (What is Genetic Disorder) ?
यह दोष अनुवांशिक अर्थात क्रोमोसोम्स में किसी प्रकार की गड़बड़ी या संरचना में असमान्यता के कारण बच्चों में अनुवांशिक रोग पहुँच जाते है। ऐसा किसी एक जींस या कई जींस में समस्या होने पर होता है । हमारे शरीर 23 जोड़े क्रोमोसोम्स होते है। इनमें कोई भी गुणसूत्र आंशिक हो या सही से अलग न हो तो बच्चों में दोष आ जाते है।
अनुवांशिक रोग का मुख्य कारण निम्न है ।
- DNAमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी होने के कारण यह रोग के लक्षण दिखते है ।
- जब जीन्स की संरचना में किसी भी तरह का कोई बदलाव होता है तो रोग के लक्षण आते है ।
- जींस के रूप में परिवर्तन होने के कारण भी अनुवांशिक दोष सामने आते है ।
अनुवांशिक रोग के प्रकार (Type of Genetic disorder)
वर्णान्धता (Colour Blindness)--
इस रोग में व्यक्ति में दृष्टि से संबंधित विकार हो जाता है। परन्तु उसे सब कुछ सही दिखता तो है ,लेकिन सामान्य तौर पर रंगों को नहीं पहचान पाता है । यह लाल हरे और नीले रंग में देखा गया है ।इसे कलर विजन डिफिशिएंसी भी कहते है । यह रोग महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है। आपने अनुभव भी किया होगा की महिलाओं में रंगों की विविधता का ज्ञान अधिक होता है। इस लिए उन्हें रंगबिरगे कपड़े पहनना पसंद होता है।
चलिये आप को एक रोचक बात बताती हूँ ! क्या आप जानते है कि सांड़ लाल रंग की वस्तु को देखकर उग्र क्यों हो जाता है ? नहीं ,तो मैं आप को बताती हूँ 'सांड़ में सबसे अधिक वर्णान्धता पाई जाती है'। उसे लाल रंग की वस्तु हरी दिखाई देती है। जिससे वह उसकी तरफ भागता है।
डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome)--
डाउन सिंड्रोम को ट्राइसोमी 21 कहा जाता है ।आनुवांशिक रोग है जो बच्चों के शरीर में सामान्य दो बजाय तीन या एक अतिरिक्त आंशिक क्रोमोसोम 21 की ती प्रतिलिपि की उपस्थिति के कारण होता है। जिसके कारण शारीरिक विकास धीमी गति से होता है|चेहरे के आकर में विभिन्नता और हल्के से मध्यम गति से बौद्धिक विकास से समन्धित है। डाउन सिंड्रोम वाले युवा का बौद्धिक स्तर 8 -9 वर्षीय बच्चे के मानसिक क्षमता के बराबर होता है।
ट्राइसोमी 21वाले व्यक्तियों में प्रायः शारीरिक और बौद्धिक विकलांगता ही देखने को मिलती है।डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति की ढोड़ी छोटी, आंखों में तिरछापन ,नाक चपटी ,जीभ लम्बी मांसपेशियों में तनाव, हाथो में लकीरे होती है।डाउन सिंड्रोम वाले ज्यादातर लोगों में श्रवण और दृष्टि दोष भी होता है। डाउन सिंड्रोम के कारण शिशुओं में जन्म से ही हृदय संबंधित रोगों की दर लगभग 40% रहती है।
डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों में थायरॉयड ,कब्ज की समस्या पाई जाती है | इनमे प्रजनन क्षमता कम होती है |
एडवर्ड्स सिंड्रोम (Edwards Syndrome)--
एडवर्ड्स सिंड्रोम अनुवांशिक दोष तब उत्पन्न होती है। जब भ्रूण तैयार होने की स्थिति में सामान्य दो के बजाय गुणसूत्र संख्या 18 की तीन प्रतियां उपस्थित होती हैं। इस एक अतिरिक्त गुणसूत्र की उपस्थिति से बच्चे के सामान्य विकास में बाधा उत्पन्न हो जाती है।कभी कभी तो भ्रूणावस्था में ही बच्चे की मृत्यु हो जाती है। एडवर्ड्स सिंड्रोम वाले बच्चों में लगभग 130 किस्म की शारीरिक समस्याएँ रहती है | इनकी उम्र छोटी होती है |
एडवर्ड्स सिंड्रोम तीन प्रकार के होते है :-
- फुल ट्राइसॉमी 18 : बच्चे के शरीर की सभी कोशिका में अतिरिक्त क्रोमोसोम 18 उपस्थित रहता है।
- आंशिक ट्राइसॉमी 18 : बच्चे के शरीर की कोशिकाओं में अतिरिक्त गुणसूत्र 18 आंशिक रूप में उपस्थित रहता है जो किसी दूसरे गुणसूत्र के साथ जुड़ा हुआ पाया जाता है।
- मोज़ेक ट्राइसॉमी 18 : यह अतिरिक्त गुणसूत्र 18 बच्चे के शरीर की प्रत्येक कोशिका में न होकर कुछ ही कोशिकाओं में उपस्थित रहता है |
हीमोफिलिया (Haemophilia) --
अधिरक्तस्राव या हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रोग है | ब्लीडर रोग ,शाही रोग ,क्रिसमस रोग भी कहा जाता है |जो प्रायः पुरुषों में होता है और औरतों से गर्भावस्था में स्थानांतरित होता है | जिसमें शरीर के बाहर रक्त बहने पर उस पर थक्का नहीं जमता है। इससे व्यक्ति को चोट लगने या दुर्घटनाग्रस्त होने पर बहता रक्त जल्दी बंद न होने पर यह जानलेवा हो जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्लाज्मा में उपस्थित फाइब्रिनोजन प्रोटीन व रक्त प्लेटलेट्स में उपस्थित थ्राम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin) नामक तत्व की कमी के कारण रक्त जमने की क्रिया प्रारम्भ होती है। हिमोफिलिया रोग में शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक व आँख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों में सूजन आ जाती है।
हिमोफिलिया दो प्रकार के होते है |
- हिमोफिलिया A:- इसमें कारक 8 प्रोटीन की मात्रा कम या नहीं होती है | इससे ग्रसित लोगो की संख्या 80 प्रतिशत होती है |
- हिमोफिलिया B:- इसमें कारक 9 की कमी या अनुपस्थिति होती है | इससे ग्रसित लोगो का प्रतिशत 20 होता है इसे क्रिसमस रोग कहते है |
क्लाइन फेल्टर (Klinefelter)--
XO या XXYभी कहा जाता है, इसमें जिन पुरुषों में दो या दो से अधिक X गुणसूत्र उपस्थित होते हैं।यह लिंग निर्धारण करने वाले गुणसूत्रों द्वारा होता है यह रोग माता पिता से उनके बच्चों में स्थानांतरित नहीं होता बल्कि गुणसूत्र विभाजन के समय इस प्रकार दोष उत्पन्न होजाते है इस विकार से ग्रसित पुरुषो में प्रमुख लक्षण बांझपन(नपुंसकता ) और छोटे अंडकोष हैं।
इसके अतिरिक्त जो लक्षण दिखाई देते है इसमें पुरुष अपने माता पिता और भाई बहनों से लम्बे , कमजोर मांसपेशियों , खराब समन्वय, चिकना शरीर ,स्तन स्त्रियों की तरह और सेक्स इच्छा मेंकमी वाले होते है। प्रायः ये सभी लक्षण युवावस्था होने पर नजर आने लगते है |
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टर्नर सिंड्रोम(Turner Syndrome)--
टर्नर सिंड्रोम इसमें स्त्रियों में लिंग निर्धारित करने वाले गुणसूत्र में या (X?) नहीं होता है या (Xx)अधूरा होता है जिसके कारण इसे 45X या 45X0 भी कहा जाता है| यह विकार जन्मजात होते है परन्तु माता पिता से उनके बच्चों में स्थानांतरित नहीं होते है| बल्कि गुणसूत्र विभाजन क्रिया में किसी के दौरान उत्पन्न होती है | इसमें परमख लक्षण बांझपन और अंडाशय का विकसित न होना होता है | यह लक्षण वयःसंधि की अवस्था से नजर आते है |
मर्फन सिंड्रोम (Marfan Syndrome)--
मार्फन सिंड्रोम एक आनुवंशिक विकार है जो संयोजी ऊतक को प्रभावित करता है ।यह गुणसूत्र 15वें पर उपस्थित FBN1 जीन में परिवर्तन के कारण होता है इससे विकार ग्रस्त लोगो के हाथ ,पैर लंबे और पतले तथा हाथ पैरों की उंगलियां भी पतली व लम्बी होती हैं ।ऐसे व्यक्तियों के जोड़ असाधारण रूप से लचीले ज और रीढ़ की हड्डियां असामान्य रूप से घुमावदार होती हैं । इन व्यक्तियों के हृदय और महाधमनी में विभिन्न प्रकार की समस्याओं से खतरा रहता है । यह आखों ,संचार प्रणाली ,त्वचा और फेफड़ो के साथ साथ हड्डियों और मांसपेशियों को भी प्रभावित करता है।
पटाऊ सिन्ड्रोम (Ptau syndrome)--
इस अनुवांशिक विकार की स्थिति गुणसूत्र 13 के व्यक्ति के शरीर की कुछ अथवा सभी कोशिकाओं में अतिरिक्त या कहीं और स्थानांतरित होने पर उत्पन्न होती है। इस विकार की स्थिति में सामान्य विकास नहीं हो पाता है और इससे विभिन्न और जटिल प्रकार की असमान्यतायें होती है। बच्चों के चेहरे ,तंत्रिका और ह्रदय संबंधी विकार होते है बच्चे की आँखें न खुलना,दिल में छेद होना,एक कान न होना ,मानसिक विकास न होना सर का आकर सामान्य से छोटा होना।ऐसे बच्चों की मृत्यु दर अधिक रहती है |
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थेलेसीमिया (Telassemia)--
थेलेसीमिया माता-पिता के द्वारा बच्चों में स्थानांतरित होने वाला अनुवांशिक विकार है ।यह रोग रक्त विकारो का समूह है यह रोग जीन में कई प्रकार के म्यूटेशन उत्पन्न होने से हो जाता है इस रोग में शरीर की हीमोग्लोबिन उत्पादन क्षमता प्रभावित हो जाती है जिसके कारण रक्तहीनता के लक्षण नजर आने लगते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं का आकर विकृत हो जाता है जो शिशुओं में तीन माह की आयु के बाद दिखते है।
हीमोग्लोबिन में प्रोटीन होते है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थेलेसीमिया में ग्लोबिन निर्माण की क्रिया सामान्य रूप से नहीं होती है। जिससे लाल रक्त कोशिकाओ के तेजी से नष्ट होने से बच्चे में रक्त की बहुत कमी होने लगती है जिससे उसे बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। जिससे हीमोग्लोबिन का उत्पादन नहीं हो पाता है और बार-बार रक्त चढ़ने से बच्चे के शरीर में लौह तत्व अधिक होने लगता है ,जो हृदय, यकृत और फेफड़ों में पहुँचकर जानलेवा हो जाता है।
थेलेसीमिया दो प्रकार का होता है।
- मेजर थैलेसेमिया:--जिन माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया पहले से होता है।तो उनसे जन्मे बच्चों में यह रोग होता है जिसे मेजर थेलेसीमिया कहते है।
- माइनर थैलेसेमिया:--जिन बच्चों के माता-पिता दोनों में से किसी एक के जीन इससे प्रभावित होते है। उनमें यह रोग हो जाता है। जिसे माइनर थेलेसीमिया कहते है।
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